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ऊ॒र्ध्वं नु॑नुद्रेऽव॒तं त ओज॑सा दादृहा॒णं चि॑द्बिभिदु॒र्वि पर्व॑तम्। धम॑न्तो वा॒णं म॒रुतः॑ सु॒दान॑वो॒ मदे॒ सोम॑स्य॒ रण्या॑नि चक्रिरे ॥

English Transliteration

ūrdhvaṁ nunudre vataṁ ta ojasā dādṛhāṇaṁ cid bibhidur vi parvatam | dhamanto vāṇam marutaḥ sudānavo made somasya raṇyāni cakrire ||

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Pad Path

ऊ॒र्ध्वम्। नु॒नु॒द्रे॒। अ॒व॒तम्। ते। ओज॑सा। दा॒दृ॒हा॒णम्। चि॒त्। बि॒भि॒दुः॒। वि। पर्व॑तम्। धम॑न्तः। वा॒णम्। म॒रुतः॑। सु॒ऽदान॑वः। मदे॑। सोम॑स्य। रण्या॑नि। च॒क्रि॒रे॒ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:85» Mantra:10 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:10» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - जैसे (मरुतः) वायु (ओजसा) बल से (अवतम्) रक्षणादि का निमित्त (दादृहाणम्) बढ़ाने के योग्य (पर्वतम्) मेघ को (बिभिदुः) विदीर्ण करते और (ऊर्ध्वम्) ऊँचे को (नुनुद्रे) ले जाते हैं, वैसे जो (वाणम्) बाण से लेके शस्त्रास्त्र समूह को (धमन्तः) कंपाते हुए (सुदानवः) उत्तम पदार्थ के दान करनेहारे (सोमस्य) उत्पन्न हुए जगत् के मध्य में (मदे) हर्ष में (रण्यानि) संग्रामों में उत्तम साधनों को (विचक्रिरे) करते हैं (ते) वे राजाओं के (चित्) समान होते हैं ॥ १० ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्य लोग इस जगत् में जन्म पा, विद्या शिक्षा का ग्रहण और वायु के समान कर्म्म करके सुखों को भोगें ॥ १० ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते कीदृशा इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

यथा मरुत ओजसाऽवतं दादृहाणं पर्वतं मेघं बिभिदुरूर्ध्वं नुनुद्रे तथा ये वाणं धमन्तः सुदानवः सोमस्य मदे रण्यानि विचक्रिरे ते राजानश्चिदिव जायन्ते ॥ १० ॥

Word-Meaning: - (ऊर्ध्वम्) उत्कृष्टमार्गं प्रति (नुनुद्रे) नुदन्ति (अवतम्) रक्षणादियुक्तम् (ते) मनुष्याः (ओजसा) बलपराक्रमाभ्याम् (दादृहाणम्) दृंहितुं शीलम् (चित्) इव (बिभिदुः) भिन्दन्तु (वि) विविधार्थे (पर्वतम्) मेघम् (धमन्तः) कम्पयमानाः (वाणम्) वाणादिशस्त्रास्त्रसमूहम् (मरुतः) वायवः (सुदानवः) शोभनानि दानानि येषां ते (मदे) हर्षे (सोमस्य) उत्पन्नस्य जगतो मध्ये (रण्यानि) रणेषु साधूनि कर्माणि (चक्रिरे) कुर्वन्ति ॥ १० ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्या अस्य जगतो मध्ये जन्म प्राप्य विद्याशिक्षां गृहीत्वा वायुवत् कर्माणि कृत्वा सुखानि भुञ्जीरन् ॥ १० ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी या जगात जन्माला येऊन विद्या, शिक्षण घ्यावे व वायूप्रमाणे कर्म करावे व सुख भोगावे. ॥ १० ॥